
वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 (Waqf Amendment Bill 2024) भारत सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिए प्रस्तुत किया गया एक विधेयक है। इसे 2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में पेश किया गया, जिसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में सुधार, पारदर्शिता बढ़ाना और संपत्तियों के प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाना है। यह विधेयक पिछले कुछ वर्षों से चल रही बहस का परिणाम है, जिसमें वक्फ बोर्ड की शक्तियों, संपत्तियों के दुरुपयोग और प्रशासनिक खामियों की आलोचना होती रही है।
वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 की पृष्ठभूमि

वक्फ बोर्ड भारत में मुस्लिम समुदाय की धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक गतिविधियों के लिए दान की गई संपत्तियों (वक्फ) का प्रबंधन करता है। देश में लगभग 8.7 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जो करीब 9 लाख एकड़ से अधिक भूमि पर फैली हैं। हालांकि, इन संपत्तियों के प्रबंधन में भ्रष्टाचार, अवैध कब्जे और पारदर्शिता की कमी की शिकायतें लंबे समय से उठती रही हैं। संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने 2024 में अपनी रिपोर्ट में इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए 40 से अधिक संशोधनों की सिफारिश की थी, जिसके आधार पर यह बिल तैयार किया गया।
प्रमुख प्रावधान
- संपत्ति सत्यापन और सर्वेक्षण:
- वक्फ संपत्तियों के दावों के लिए अनिवार्य सत्यापन प्रक्रिया लागू की जाएगी।
- जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और विवादित दावों को सुलझाने का अधिकार दिया जाएगा।
- संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड बनाया जाएगा, जिसमें GIS मैपिंग शामिल होगी।
- बोर्ड की संरचना में बदलाव:
- वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान।
- बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका बढ़ेगी।
- बोर्ड के पास संपत्ति को “वक्फ” घोषित करने की असीमित शक्ति को सीमित किया जाएगा।
- पारदर्शिता और जवाबदेही:
- वक्फ संपत्तियों का वार्षिक ऑडिट अनिवार्य होगा, जिसकी निगरानी केंद्रीय वक्फ परिषद करेगी।
- आय और व्यय का सार्वजनिक खुलासा करना होगा।
- वक्फ संपत्तियों से होने वाली आय का उपयोग समुदाय के कल्याण के लिए सुनिश्चित करना।
- कानूनी बदलाव:
- वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
- “वक्फ-बाय-यूजर” (लंबे समय तक उपयोग से वक्फ घोषित करना) की प्रथा को खत्म करने का प्रस्ताव।
- संपत्ति पर दावा करने के लिए 100 साल पुराने दस्तावेजों की वैधता को सीमित करना।
- अन्य सुधार:
- अवैध कब्जे को रोकने के लिए सख्त दंड का प्रावधान।
- वक्फ संपत्तियों के किराये और पट्टे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना।
सरकार का तर्क
केंद्र सरकार, विशेष रूप से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने दावा किया है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड को “सुधारने और सशक्त बनाने” के लिए है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह बिल मुस्लिम समुदाय के गरीब वर्ग, महिलाओं और बच्चों के हित में है, क्योंकि वक्फ संपत्तियों की आय का दुरुपयोग रोका जाएगा। सरकार का यह भी कहना है कि वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों के कारण सरकारी और निजी संपत्तियों पर अवैध दावे किए गए हैं, जिन्हें यह बिल रोकेगा।
विपक्ष का विरोध
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर हमला करार दिया है।
- कांग्रेस: इसे संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया।
- AIMIM: असदुद्दीन ओवैसी ने इसे “मुस्लिम विरोधी” और वक्फ की मूल भावना के खिलाफ कहा।
- सपा: अखिलेश यादव ने इसे “संपत्ति हड़पने की साजिश” करार दिया और कहा कि यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ है।
- TMC और DMK: इसे केंद्र का राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप बताया।
विपक्ष का तर्क है कि वक्फ एक धार्मिक मामला है और इसमें गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति या सरकारी हस्तक्षेप अस्वीकार्य है।
समाज और संगठनों की प्रतिक्रिया
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB): इसने बिल को “काला कानून” कहा और इसके खिलाफ देशव्यापी विरोध की चेतावनी दी।
- जमीयत उलेमा-ए-हिंद: इसे मुस्लिम समुदाय की स्वायत्तता पर हमला बताया।
- कुछ मुस्लिम विद्वान: इसे आधुनिकीकरण के लिए जरूरी कदम मानते हैं, लेकिन सरकारी नियंत्रण पर सवाल उठाए।
वर्तमान स्थिति (2 अप्रैल 2025)
- विधेयक को लोकसभा में पेश कर दिया गया है और 8 घंटे की चर्चा के बाद इसे आगे की समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेजा जा सकता है।
- इसे कानून बनने के लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत और राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होगी।
- NDA के पास लोकसभा में पर्याप्त समर्थन है, लेकिन राज्यसभा में स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है।
संभावित प्रभाव
- सकारात्मक: संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन, भ्रष्टाचार में कमी, और समुदाय के लिए अधिक लाभ।
- नकारात्मक: धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल, समुदाय में असंतोष, और कानूनी विवादों में वृद्धि।
यह विधेयक भारतीय राजनीति और समाज में एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। आने वाले दिनों में इस पर और बहस और प्रदर्शन होने की संभावना है।

