
परंपरागत फसलों की तुलना में अब किसान कुछ हटकर और लाभकारी फसलें उगाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इन्हीं में से एक है ड्रैगन फ्रूट, जिसे भारत में अब “कमलम” नाम से भी जाना जाता है। यह आकर्षक दिखने वाला फल न सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि सेहत के लिहाज़ से भी बेहद फायदेमंद माना जा रहा है। देश के कई राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में अब इस फल की खेती तेजी से बढ़ रही है। खास बात यह है कि इसकी खेती कम पानी में, कम देखभाल के साथ और बंजर ज़मीनों पर भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। बदलते मौसम, बढ़ती लागत और घटते मुनाफे के दौर में देश के किसान अब परंपरागत खेती से हटकर नवाचार और उच्च मूल्य वाली फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। यह विदेशी फल अब देश की मिट्टी में फल-फूल रहा है और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने का एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है।
इस विषय पर विस्तृत जानकारी देते हुए धर्मेन्द्र कुमार, जो कि आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के शोध (Ph.D.) छात्र हैं, बताते हैं कि “ड्रैगन फ्रूट एक कैक्टस प्रजाति का फल है जो कम पानी में भी उगाया जा सकता है। यह न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है बल्कि इसके स्वास्थ्यवर्धक गुण इसे बाजार में अत्यंत लोकप्रिय बनाते हैं।” ड्रैगन फ्रूट: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिचय: ड्रैगन फ्रूट, जिसे वैज्ञानिक नाम Hylocereus undatus से जाना जाता है, मूलतः मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका का फल है, लेकिन इसकी खेती अब भारत के कई राज्यों में सफलतापूर्वक की जा रही है। इस फल का छिलका गहरे गुलाबी या लाल रंग का होता है, और अंदर का गूदा सफेद या बैंगनी रंग का होता है जिसमें छोटे-छोटे काले बीज होते हैं।
धर्मेन्द्र कुमार बताते हैं कि यह फल विटामिन-C, कैल्शियम, आयरन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत है। इसके सेवन से पाचन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता है। यही कारण है कि आज यह फल स्वास्थ्य-जागरूक उपभोक्ताओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

कमलम की खेती: फायदे ही फायदे: कम पानी में अधिक उत्पादन –
यह पौधा सूखा सहन कर सकता है लंबी उत्पादकता अवधि, कम देखभाल, कम श्रम लागत –
खरपतवार नियंत्रण, जैविक खेती के लिए उपयुक्त – कीटनाशकों का प्रयोग बहुत कम होता है
बंजर भूमि पर भी संभव – हल्की और पथरीली ज़मीन में भी इसकी खेती सफल होती है।
सरकार का सहयोग और शोध संस्थानों की भूमिका:
केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अब ड्रैगन फ्रूट को प्रोत्साहित फसल के रूप में मान्यता दे रही हैं। किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) के माध्यम से तकनीकी जानकारी, पौध रोपण सहायता, और 50% तक की सब्सिडी दी जा रही है। गुजरात सरकार ने इस फल को राष्ट्रीय भावना से जोड़ते हुए इसका नाम “कमलम” रखा है, जो अब किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुका है। धर्मेन्द्र कुमार बताते हैं, “हमारे विश्वविद्यालय में ड्रैगन फ्रूट पर लगातार शोध हो रहा है जिससे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली किस्में, बेहतर उत्पादन तकनीक और मार्केटिंग से जुड़ी जानकारी मिल सके।” यदि वैज्ञानिक ढंग से खेती की जाए, तो आने वाले 5 वर्षों में भारत ड्रैगन फ्रूट उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है।निष्कर्षड्रैगन फ्रूट यानी ‘कमलम’ केवल एक विदेशी फल नहीं, बल्कि एक नई कृषि क्रांति की नींव है। यह खेती न केवल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि जल संरक्षण, पोषण सुरक्षा और जैविक खेती जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी योगदान दे रही है। धर्मेन्द्र कुमार जैसे युवा वैज्ञानिकों और किसानों की पहल से यह उम्मीद की जा सकती है कि कमलम की चमक जल्द ही देशभर के खेतों में दिखाई देगी, और यह फल भारत के कृषि मानचित्र पर एक सुनहरा अध्याय जोड़ेगा।
