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पितृ पक्ष… पितरों को स्मरण करने का उत्सव


पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को स्मरण करने का प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला पंद्रह दिन का एक पर्व है जिसे प्रत्येक हिंदू बहुत ही तन्मयता के साथ मनाता है ।भारतीय संस्कृति में पूर्वजों का आदर एवं स्मरण करना अत्यंत पवित्र माना गया है। हमारे जीवन का आधार माता-पिता और उनके पूर्वज ही होते हैं। उनके आशीर्वाद के बिना जीवन की पूर्णता संभव नहीं है। कहा जाता है कि आर्थिक संकट पूर्वजों के नाराज होने से ही उत्पन्न होता है ।पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने हेतु पितृ पक्ष का आयोजन किया जाता है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक (लगभग 15 दिनों तक) मनाया जाता है।

पितृ पक्ष का महत्व- हमारे हिंदू धर्म में दो लोक का विशेष वर्णन मिलता है

१-देव लोक-इस लोक में देवताओं का निवास है इसके राजा इंद्र है और संवाहक अग्नि देवता है इन्ही के द्वारा हमारी दी हुई आहुति देवो तक जाती है इनकी पत्नी का नाम स्वाहा है इसलिए आहुति के समय स्वाहा बोलते हैं।

२-पितृ लोक-इस लोक में हमारे पूर्वजों का वास है उसके स्वामी यमराज हैं। इसके संवाहक देवता पितर है इनकी पत्नी का नाम स्वधा है। तिल मिले हुए जल को जब हम अपने पितर का नाम लेकर स्वधा बोलते है तो वह जल हमारे पितरों को प्राप्त होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इन दिनों में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से तृप्ति की अपेक्षा करती हैं। जो संतान श्रद्धापूर्वक अन्न, जल और तर्पण अर्पित करती है, उसके पितर संतुष्ट होकर उसे आशीर्वाद देते हैं। इससे परिवार में सुख-समृद्धि, शांति और उन्नति बनी रहती है।

श्राद्ध की विधि
पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। विशेष रूप से गंगा, गया, प्रयागराज, हरिद्वार अयोध्या जैसे तीर्थस्थलों पर पिंडदान का अत्यधिक महत्व है। श्राद्ध के समय ब्राह्मण भोजन कराए जाते हैं और दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्माएं तृप्त होकर स्वर्गलोक में सुख पाती हैं।और इस समय भगवत कथा सुनना सबसे पवित्र पितृ मोक्ष कारक माना जाता है ।

पौराणिक कथाएं
पितृ पक्ष से संबंधित कई कथाएं हैं। एक कथा आती है उसमे कहा गया है कि जिस तरह का दान आप देते है उसी तरह का फल हमे पितृ लोक में प्राप्त होता है ।कहा जाता है कि महाभारत के समय कर्ण जब स्वर्गलोक पहुँचे तो उन्हें सोने-चांदी के आभूषण मिले, परंतु भोजन नहीं मिला। कारण यह था कि उन्होंने जीवन में दान तो किया, परंतु कभी अन्न का दान नहीं किया था। तब भगवान ने उन्हें पितृ पक्ष में पृथ्वी पर लौटकर अन्नदान करने का अवसर दिया। इसी से इस काल का महत्व और बढ़ जाता है।


पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है। हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इस आयोजन से अपने पितरों का स्मरण करती हैं उनको जान पाती है ।यदि यह परम्परा लुप्त हो गई तो लोग अपने पितरों को भूल ही जाएँगे ।यह हमें यह संदेश देता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपने पितरों का सम्मान करते हुए उनके दिए संस्कारों को जीवन में अपनाएँ।


लेखक-श्री वत्साचार्य जी महाराज (डॉ अशोक पाण्डेय ) पीठाधीश-शिवधामकाशी अयोध्या ।संस्थापक-विप्र संजीवनी परिषद गुरुकुल अयोध्या प्राचार्य-श्री राजगोपाल संस्कृत महाविद्यालय अयोध्या

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