
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 13 अक्टूबर 2025 को तालाबों, चरागाहों और ग्राम सभा की अन्य सार्वजनिक भूमि पर बढ़ते अतिक्रमण को “प्रकृति और संविधान पर हमला” करार देते हुए एक ऐतिहासिक और कड़ा आदेश जारी किया है। यह आदेश जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया, जिसमें अतिक्रमण की समस्या को “प्रकृति पर सीधा आघात” बताया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब केवल कागजी कार्रवाई पर्याप्त नहीं होगी और पूरे उत्तर प्रदेश से सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे हटाने होंगे।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ग्राम प्रधानों और लेखपालों को भी अतिक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ग्राम सभा की संपत्ति की रक्षा करना इन अधिकारियों का कर्तव्य है। यदि अतिक्रमण होता है और वे इसे रोकने में विफल रहते हैं, तो उन्हें भी दोषी माना जाएगा। ऐसे में उनके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई और संभावित वित्तीय दायित्व तय किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया में इन अधिकारियों को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
मुख्य निर्देश:समय सीमा: पूरे प्रदेश में सरकारी भूमि से अतिक्रमण 90 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से हटाया जाए।
अधिकारियों की जिम्मेदारी: अतिक्रमण करने वाला ही दोषी नहीं, बल्कि उसे रोकने में चूक करने वाला अधिकारी भी अपराधी माना जाएगा। दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी, जिसमें वित्तीय दायित्व भी शामिल हो सकता है।
कार्रवाई का तरीका: अतिक्रमण हटाने की प्रक्रिया “शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़” होनी चाहिए। पुलिस को पूर्ण सहयोग देने के निर्देश दिए गए हैं।
शिकायतों का निपटारा: अतिक्रमण की शिकायत करने वाले व्यक्ति को हर स्तर पर सुनवाई का अधिकार होगा। याचिकाकर्ताओं को अतिक्रमणकारियों या अधिकारियों द्वारा धमकी देने पर सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
निगरानी: कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश का पालन सुनिश्चित करने और प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
पृष्ठभूमि: यह आदेश अतिक्रमण से जुड़ी कई जनहित याचिकाओं पर आधारित है, जहां कोर्ट ने दुख जताया कि अदालतें ऐसी याचिकाओं से भरी पड़ी हैं।
कोर्ट ने ग्राम प्रधानों, लेखपालों और अन्य अधिकारियों को ग्राम सभा की संपत्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी याद दिलाई। यदि कोई अधिकारी नियमों का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।यह आदेश पर्यावरण संरक्षण, जलस्रोतों की रक्षा और सार्वजनिक भूमि के उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ पुनर्वास योजनाओं पर भी विचार किया जाए, लेकिन अवैध कब्जे पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए।


